आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

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वह भी कोई देश है महाराज 2: अनिल यादव

कथेतर / Non-Fiction

हम दोनों को ही जोरदार पूर्वाभास था कि कहाँ जाना है और वहाँ हमारा स्वागत करने वाले लोग कौन होंगे. …लेकिन स्टेशन से बाहर निकलते ही सबसे पहले तामुल खाना चाहता था. इस नशीली सुपारी से मेरा बचपन से भय, जुगुप्सा, अपराध बोध और आकर्षण का संबंध रहा है. सबसे पहले इस तामुल ने ही […]



Five Grains Of Sugar: Manav Kaul

कथा / Fiction

Five Grains Of Sugar: Manav Kaul I can sort-of-smile these days I can sort-of-laugh as well I have learned to stay alive. I see things as they seem these days What I cannot see does not exist It matters not to me these days. I am the neutral middle The road that leaves home every […]



Exploring the Sakshi Bhava: Nand Kishore Acharya in Conversation

कथेतर / Non-Fiction

Giriraj: Your creative talent, given the popular difference between the creative and the critical, has found expression in lyrical and dramatic forms, which according to Aristotle are types of poetry or poesy. This could be my preface to our dialogue on your plays and as well as an indicator to see it as an abiding […]



मुझे बस उत्सव में शामिल कर लोः मनोज कुमार झा

कथेतर / Non-Fiction

बाँसक ओधि उखाड़ि करै छी जारनि हमर दिन नहि घुरतकि हे जगतारिनि (नागार्जुन, पत्रहीन नग्न गाछ, १९६८) (बाँस की जड़ें खोदकर लाता और मात्र वही जलावन, ऐ जगतारनी क्या मेरे दिन नहीं फिरेंगे?) एक स्त्री के द्वारा बाँस की जड़ें उखाड़कर अपने हिस्से की आग जुटाने का कठिन श्रम, उस जड़ के जलने से उठ […]



कविता चींटियों की बांबी में लगी ख़तरे की घंटी है: गीत चतुर्वेदी

कथेतर / Non-Fiction

आज की कविता के बारे में कुछ भी बोलने से पहले मैं उस समाज के बारे में सोचता हूँ, जिसमें मैं रहता हूँ, जो कि बोर्हेस के शब्दों में ‘स्मृतियों और उम्मीदों से पूर्णत: मुक्त, असीमित, अमूर्त, लगभग भविष्य-सा’ है; मैं उस भाषा के बारे में सोचता हूँ, जिसमें मैं सोचता-लिखता हूँ, जो कि, जैसा […]



वही एक रंग: निशांत

कविता / Poetry

सैयद हैदर रज़ा की एक पेंटिंग देखकर उसने देखा एक रंग और चुप हो गया उसने बनाई धरती और शांत हो गया उसने रचा ब्रह्माण्ड का वितान और मौन हो गया उसके अन्दर हमेशा बजता रहता एक अनहद नाद सारे संसार में चुप्पी मौन शांति के सौंदर्य का साम्राज्य धीरे धीरे फ़ैल रहा था उससे […]



एक पत्थर बेडौल अटपट गुरूत्त्व के अधीनः मनोज कुमार झा

कविता / Poetry

संशय आग की पीठ से पीठ रगड़ना कभी, कभी पैरों में बाँध लेना जल की लताएँ रात की चादर की कोई सूत खींच लेना फेंट देना उसे सुबह के कपास में कमल के पत्ते से छुपाना चेहरा, फोटो खिंचवाना गुलाब से गाल सटाकर ट्रेन से कूदना देखने मोर का नाच और बुखार में हाथ हिलाना […]



अधिकार से असुरक्षा: गीत चतुर्वेदी

कविता / Poetry

अधिकार से असुरक्षा आती है और असुरक्षा एक राजनीतिक औजार होती है हर पलंग के पास एक बुरा सपना होता है। कमर टिकाते ही जकड़ ले। हर घर में कुछ बूढ़ी रूहें होती हैं, जो नींद या जाग में, सफ़ेद साड़ी पहने इस कोने से उस कोने तक जाती दिख जाती हैं। रात को जब […]



एक घर था और एक सिनेमाघरः जितेंद्र श्रीवास्तव

कविता / Poetry

कला आज दिन भर भटका घूमता रहा बाज़ारों में ढूँढ़ता रहा एक अदद दीया ऐसा जिस पर कर सके कारीगरी मेरी बेटी मैं दिन भर ढूँढ़ता रहा एक दीया ऐसा जिसमें कम हो कारीगरी कुम्हार की शायद हो किसी दुकान पर ऐसा जिसे रचने में कम मन लगा हो कुम्हार का पर मैं लौट आया […]



किसी सिरफिरे की कोई बिसरी हुई धुनः यतींद्र मिश्र

कविता / Poetry

समय ओपेरा इतिहास की एक धूल भरी तारीख़ से उठाता हूँ मैं अनगिनत बार बजायी जा चुकी एक मार्मिक धुन छूते ही जिसको हवा में छिटक जाते हैं चारों ओर शोकगीतों के ढेरों मिसरे यह धुन जिसमें कुछ और धुनें भी शामिल हैं दरअसल सिर्फ संगीत नहीं हैं वे अमानवीयता के प्रतिकार की ऐसी सिसकियाँ […]