आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

All entries by this author

भास की समकालीन व्याख्या: रतन थियम से संगीता गुन्देचा की बातचीत

कथेतर / Non-Fiction

मणिपुर के रंग निर्देशक रतन थियम पारम्परिक संस्कृत नाटकों को उनकी आधुनिक व्याख्या के साथ प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते है. उनका रंगकर्म अद्भुत रंग-संयोजन और अप्रतिम लय के कारण अनूठा है. वे अपना चित्रकार व कवि होना न सिर्फ़ अपनी चित्रकृतियों व कविताओं में व्यक्त करते है बल्कि उनका रंगकार्य भी इनका अचूक […]



भास का अनुकीर्तन: कावालम नारायण पणिक्कर से संगीता गुन्देचा की बातचीत

कथेतर / Non-Fiction

केरल के सुविख्यात रंगनिर्देशक कावालम नारायण पणिक्कर संस्कृत के शास्त्रीय रंगमंच पर वर्षों से एक केन्द्रीय उपस्थिति रहे हैं. श्री पणिक्कर की अधिकांश रंगशिक्षा केरल के पारम्परिक परिवेश और वहाँ की कुडियाट्टम्‌ जैसी  पारम्परिक रंगशैलियों के मध्य हुई. पणिक्कर की नाट प्रस्तुतियों में संस्कृत रंगमंच की सदियों पुरानी परम्परा मानो हम तक अटूट चली आयी […]



भास की उपस्थिति: संगीता गुन्देचा

कथेतर / Non-Fiction

(Kavalam Narayan Panikker’s production of Bhasa’s Karnabharam. Photo Courtesy Sangeeta Gundecha.) शताब्दियों तक संस्कृत के आद्य नाट्यकार महाकवि भास के नाटक अनुपलब्ध थे. उनका नाम संस्कृत और अन्य साहित्य परिसरों में चन्द्रिका की तरह फैला हुआ था पर उनके नाटकों के लिखित प्रारूप अनुपलब्ध थे. अब से ठीक सौ बरस पहले केरल में टी. गणपति […]



भास का लोकरंग: हबीब तनवीर से संगीता गुन्देचा की बातचीत

कथेतर / Non-Fiction

भारतीय रंगमंच पर लोक रंगपरम्परा को उसके पूरे वैभव और परिष्कार में व्यवहृत करने वाले रंगनिर्देशक हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ी बोली और हिन्दी में संस्कृत नाटकों के मंचन के लिए सुविख्यात हैं. हबीब तनबीर ने संस्कृत नाटकों के अलावा ब्रेख़्त, शेक्सपीयर, स्टीफ़न ज़्वायग की कृतियों को भी छत्तीसगढ़ी में मंचित किया है. इन्होंने ख़ुद भी कई […]



कोई दूसरा अंत: गीत चतुर्वेदी

कथेतर / Non-Fiction

दुनिया के ख़त्म होने के दिन का गीत दुनिया को ख़त्म होना है जिस दिन एक मक्खी मंडरा रही है घास की पत्तियों के गिर्द मछुआरा लहराते जाल की मरम्‍मत कर रहा छोटी डॉल्फि़नें ख़ुशी से कूद रहीं समंदर में छज्जे के पास नन्ही गौरैया खेल रही हैं और सांप की त्वचा हमेशा की तरह […]



Thirteen Ways of Reading Sappho: Aseem Kaul

कथेतर / Non-Fiction

Thirteen Ways of Reading Sappho Come, divine shell, / find your voice and sing. –          Sappho 1. So many translations. Guy Davenport renders this: “Lead off, my lyre, / And we shall sing together” Jim Powell: “Come now, my holy lyre, / Find your voice and speak to me” Willis Barnstone : “Come, holy tortoise […]



अगर बच सका तो: गिरिराज किराड़ू

कथेतर / Non-Fiction

थोड़ा-सा: अशोक वाजपेयी अगर बच सका तो वही बचेगा हम सबमें थोड़ा-सा आदमी – जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता, अपने बच्चे के नम्बर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर, जो रास्ते पर पड़े घायल को सब काम छोड़कर सबसे पहले अस्पताल पहुँचाने का जतन करता है, जो अपने सामने हुई वारदात की गवाही देने […]



खुली हवा के गलियारे में – ‘अ’: अनिरुद्ध उमट

कथेतर / Non-Fiction

ज्योत्स्ना मिलन चिट्ठी यानी हाथ की लिखी, असली वाली चिट्ठी, ई-मेल वाली बिना किसी पहचान की वर्च्युअल चिट्ठी नहीं . हाथ की लिखी हर चिट्ठी की अपनी एक अलग पहचान होती है . उसी ककहरे और बाराखड़ी से बनी होती है हर लिखावट, तब भी होती है कितनी अलग एक दूसरी से. हर  लिखावट एक […]



विशिष्टताओं के विरुद्ध: शिरीष कुमार मौर्य

कथेतर / Non-Fiction

हरेप्रकाश उपाध्याय के पहले संकलन ‘खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ‘ पर एक फौरी पड़ताल 2000 के बाद की युवा कविता में जिन कवियों ने सबसे अधिक प्रभावित किया है, मेरे लिए उनमें हरेप्रकाश उपाध्याय का नाम बहुत ख़ासहै. उन्हें तीसरा अंकुर मिश्र कविता पुरस्कार मिला और अभी हाल में ही भारतीय ज्ञानपीठ से उनका पहला […]



The Road To…: Stefan Jonsson

कथेतर / Non-Fiction

Lars Andersson’s sentences! Much of what is unique about his writing is encapsulated in this one small element: the construction of each individual sentence. If it weren’t for the fact that he squeezes every single word to its very limit, I would call his prose ecstatic. One might compare it to music, dance, or perhaps […]